Sunday, August 1, 2010

बाज़ार जनित बीमारियाँ





भारत में कुछ सालों से नए नए प्रकार की बीमारियाँ फ़ैल गयी हैं, जिनका इलाज करने के बजाये सभी उससे पैसा भुनाने में लगे हुए हैं! इनके नाम हैं फ्रेंडशिप डे, वैलेंटाइन डे इत्यादी. इनका जितना बुखार मैंने इंडिया में देखा है, वैसा किसी और देश में नहीं देखा है.

जनवरी से ही टी वी पर ऐसे कार्यक्रमों का तांता लग जाता है. चाहे वो कोई सीरियल ही क्यूँ ना हो, उसमे भी एक स्पेशल एपिसोड इसपर न्योछावर कर दिया जाता है! उत्पादनों के प्रचार से अखबार, रेडिओ और टी वी खचाखच भर जाता है. रेस्टुरेंट भी आकर्षक पैकेज निकाल देते हैं, फ्रेंडशिप डे के अवसर पर - चार दोस्त पर पांचवा खाए फ्री. और वैलेंटाइनस डे पर तो ऐसी साज सज्जा होती है की पूछिए मत. चारो ओर झाड-फानूस पर दिल, धड़कता हुआ दिल, लटकता हुआ दिल, तीर मार हुआ दिल, घायल दिल, जलता हुआ दिल, सब वेराईटी दिख जायेगी आपको.

मुझे तो इन सब में आर्चीज़ गैलरी की भी गहरी साज़िश लगती है जो इसी की रोजी-रोटी खाते हैं . इतने महंगे महंगे कार्ड, मग्गा और ये 'फ्रेंशिप बैंड" इत्यादी बेचते हैं, वैसे दोष हमारा भी उतना ही है, हम खरीदते हैं, तो ये बेचते हैं. मेरी नज़र से जो ५०-१०० रुपये हम इन सब चीज़ों में बर्बाद करेंगे (बर्बाद इसलिए कह रही हूँ क्यूंकि जो सच्चे दोस्त हैं उनको किसी कार्ड या बैंड की ज़रूरत नहीं है और जिन्हें है, वो सच्चे दोस्त नहीं हैं) , उन्ही पैसों से किसी का भला करें, किसी गरीब की मदद करें, घर में काम करने वालों के बच्चों के लिए कॉपी, पेंसिल इत्यादी खरीद दें, किसी रिक्शे वाले को २ पैसे ज्यादा दे दें. मानवता का भला करें! काश, इसी तरह हम "नैतिकता दिवस" या "मानवता दिवस" भी मनाते.
हम सब अपने अपने घरों से ही शुरुवात करें, अपने छोटों को समझाएं, उनको कमज़ोर और ज़रूरतमंद लोगों के प्रति और संवेदनशील बनायें तो शायद हम किसी के चेहरे पे मुस्कान ला सकते हैं.